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विल्लुपुरम में पर्युषण काल में बही आध्यात्म की गंगा


विल्लुपुरम। गुरुदेव की असीम कृपा से पर्युषण पर्व आराधान हेतु विल्लुपुरम में उपासिका श्रीमती राजश्री डागा, कुसुमलता चोरडिया, श्री सज्जन जी नाहर एवं श्रीलता लुंकड़ का प्रवास प्रेरणादायक रहा। पर्युषण काल मे उपासिकाओं ने श्रावक-श्राविकाओं में स्वाध्याय, ध्यान, जप, तप की लौ जगाकर अध्यात्म की यात्रा करवाई। 
    17 परिवारों के इस छोटे से क्षेत्र में: 
१) नित्य सुबह 6 से 9 नवकार महामंत्र का जाप।
२) जप दिवस के दिन अखण्ड़ नवकार मंत्र का जप - चौबीस घण्टे।
३) मौन की पचरंगी - 90 घण्टे।
४) सामयिक की पचरंगी - 205 सामयिक।
५) अभिनव सामयिक - 89 सामयिक। 
६) कर्म चूर सामयिक की आठई - 120 सामयिक।
७) दस प्रत्याख्यान
८) पौषध : कुल मिलाकर 44
९) प्रतिदिन दोपहर बहनों की तत्व ज्ञान एवं जैन विद्या की कक्षा। 
१०) बच्चों के लिए शुक्रवार को शिविर एवं रविवार की ज्ञानशाला का आयोजन हुआ। 
११) प्रतिदिन सायंकाल: प्रतिक्रमण, गुरुवंदना, अर्हत वन्दना और जिज्ञासा-समाधान का सत्र। 
१२) संवत्सरी के दिन बहनों द्वारा आचार्यो की जीवन झांकी एवं बच्चों संग संस्कार वर्धक नाटक। 
१३) श्रीमती राजश्री डागा द्वारा 12 व्रती श्रावक बनने की प्रेरणा एवं व्रतों पर प्रकाश एवम प्रत्याख्यान भी करवाए गए। 
     पर्युषण काल में तपस्या की लहर छागई।
  यहाँ निम्न तपस्याएं हुई: 
दस - एक
नौ - एक
आठई - दो
तेला - दो
बेल - चार
उपवास - 84
एकासन - 22
एकासन के दो महीने - एक
एकान्तर तप दो महीने - दो

उपरोक्त  जानकारी  विल्लुपुरम महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती राखी सुराणा ने दी।



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